Saturday, 17 February 2018

रूह देखी है कभी?

रूह देखी है कभी?

रूह को महसूस किया है?

जागते जीते हुए दूधिया कोहरे से लिपट कर

साँस लेते हुए उस कोहरे को महसूस किया है?



या शिकारे में किसी झील पे जब रात बसर हो

और पानी के छपाकों में बजा करती हों टल्लियाँ

सुबकियाँ लेती हवाओं के वो बैन सुने हैं?


चौदहवीं-रात के बर्फ़ाब से चाँद को जब

ढेर से साए पकड़ने के लिए भागते हैं

तुम ने साहिल पे खड़े गिरजे की दीवार से लग कर

अपनी गहनाती हुई कोख को महसूस किया है?



जिस्म सौ बार जले तब भी वही मिट्टी का ढेला

रूह इक बार जलेगी तो वो कुंदन होगी

रूह देखी है कभी, रूह को महसूस किया है?

-- गुलज़ार

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