Saturday, 14 January 2017

एक पुरानी दोस्त से whatsapp पर बकर काट रहा था। पता नहीं क्या सूझा कि हिंदी में लिखना शुरू कर दिया. तपाक से बोली, ये क्या नौटंकी कर रहा है। हिंदी में मत लिख, समझने में दिक्कत होती है।

एक समय था जब मुझे इंग्लिश समझ नहीं आती थी। इंग्लिश की फिल्म देखने में एड़ी चोटी का ज़ोर लग जाता था, अख़बार पढ़ना तो बहुत दूर की बात थी।

आज परेशानी उलटी है। हिंदी फिल्म देखे हुए अरसा बीत जाता है, हिंदी का अख़बार घटिया लगता है, और अब दोस्तों से  इंग्लिश में ही बात होती है। ATM पर भी कभी हिंदी भाषा नहीं चुनता हूँ पैसे निकलते वक़्त।
कई बार शर्मिंदगी सी होती  कि अपनी जड़ों से अलग सा हो गया हूँ।

कल मृदुल के एक दोस्त निखिल से मिला जो हिंदी में उपन्यास लिखता है। उसने कुछ अच्छी किताबें बताई हैं पढ़ने के लिए।

ऐसे दौरे हर साल के शुरू में पड़ते है। कि इस साल शायद उर्दू पढ़ना सीख जाऊँगा, 50 किताबें पढ़ लूँगा , खाना बनाना सीख लूँगा और कुछ ऐसे ही खयाली पुलाव। देखते हैं..

P.S. : पथिक दिल्ली-6 के गाने चला रहा है। ये गाना काफी पसंद था...

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